Monday 8 February 2016

अधूरापन

वो जो वक़्त गुजारा था, तुम्हारे साथ कभी,
उनमे कुछ मैं भी गुजरा था तभी
जब लौट कर आया तुमसे अलग
तो मैं वो न रहा, जो था मैं कभी ।
कुछ अधूरा सा हो गया हूँ मैं,
लगता है कुछ तुम्हारे पास रह गया हूँ मैं ।
अधूरा हँसता हूँ, अधूरा रोता हूँ
आजकल मैं अक्सर अधूरा होता हूँ ।

कहीं भूल तो नही आया मैं खुद को तुम्हारे पास,
उन पलो में जब चलते थे हम लेकर हाथो में हाथ
कहीं तुम्हारे सिरहाने मैं ही तो नहीं
या उन बातों में शायद जो रह गयी अनकही ।
जरा अपनी बाहों में देखना, शायद मैं ही लिपटा हूँ
बन कर आंसू कोई, पलको के किनारे सिमटा हूँ ।

ये अधूरापन अच्छा नहीं लगता
मिल जाऊ मैं कभी, तो लौटा जाना मुझे
या फिर तुम ही मिल कर मुझमे
कर देना पूरा मुझे ।