" माँ कब तक घर पर ही रहूँगा, मुझे बाहर जाना है, पंख फैलाने है अपने । देखो बहार कितना बड़ा आसमान खाली पड़ा है, कितना कुछ है खोजने को, जानने को । "
जैसे जैसे वो बड़ा हो रहा था और उसकी समझ बढ़ रही थी, वैसे वैसे वो और ज्यादा जानना चाहता था। उसकी जिज्ञासा जैसे उसे खाये जाती थी ।
इन पहाड़ नदियों के परे का संसार कैसा होगा ? बाहर की दुनिया में कैसे लोग होते होंगे ?
"बेटा ! मेरे साथ रह क्या दिक्कत है ? इतना ध्यान तो रखती हूँ तेरा । क्या नहीं है यहाँ तेरे लिए ?"
लड़कपन की उम्र में अक्सर बच्चे ऐसी बातें करते है ये सोच कर माँ ने उसको उलझाते हुए पूछा ।
"सब है, मान लिया पर ये सब तुम्हारा है । इसमें मेरा क्या है ?", उसने बड़बड़ाते हुए कहा । वो समझ नहीं पा रहा था की, माँ को कैसे समझाऊ की मुझे अपने दम पर कुछ करना है। सब कुछ खुद से जानना है । किसी के कहे पर क्यों विश्वास करू, क्यों न आँखों से देखु और जानू चीज़ो को।
"अच्छा ठीक है जब वक़्त आएगा चले जाना, वैसे भी यहाँ कमाने धमाने को है ही क्या ? नौकरी करने तो जाएगा ही ना !
बस बेटा कही पास में नौकरी ढूंढ़ना, ताकि मुझसे मिलने आ पाए " ,माँ ने अपने बुढ़ापे का इंतज़ाम करते हुए कहा । हाय री किस्मत ! जाने भी नहीं देना और रोक भी नहीं सकते।
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"माँ तुमने ही तो कहा था जब वक़्त आएगा तब चले जाना, अब वक़्त आ गया है माँ।" उसने माँ की गोद में अपना सर रखते हुए कहा ।
"और अब घर का खर्चा चलने के लिए मुझे कुछ काम भी तो करना पड़ेगा ना ? कुछ जवाबदारी मेरी भी तो बनती है।"
कल सुबह वो अपने सफर पर निकलने वाला था, वो सफर जिसका सपना उसने ना जाने कब से देखा था ।
माँ ने कुछ नहीं कहा, वो जानती थी की अब उसका बेटा नहीं मानेगा। चलो अच्छा है, खुश रहे जहा भी रहे और फिर कह भी तो रहा है की कुछ सालो में वापस आ जाएगा। अभी तो मैं अपना ख्याल रख ही सकती हूँ । और जब तक बुढ़ापा दरवाजा खटखटाएगा तब तक मेरा बेटा आ ही जाएगा वापस। रात भर बस वो उसे निहारती रही अब तो बस वीडियो कॉल पर ही देख पाएगी अपने दिल क टुकड़े को ।
बेटा भी चेहरे पर मुस्कुराहट ले कर सो गया। उसे कल से शुरू होने वाले अपनी ज़िन्दगी के नए अध्याय बड़ा ही रोमांचित कर रहा था। कल से रवि दादा के पास काम करेगा और बचे हुए वक़्त में उस दूर वाली दुनिया को जानेगा । वो क्या कहते है YOLO , एक ही ज़िन्दगी है, और इसमें जितना जान पाओ जान लेना चाहिए।
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घर से निकले कितना वक़्त बीता ये तो उसे याद नहीं, पर अब हर दिन वो बस अमावस्या का इंतज़ार करता है ।जब वो अपनी माँ से सबसे ज्यादा बात कर पाता है, बाकी दिन तो वीडियो पर भी मुलाक़ात का वक़्त कम ज्यादा होता रहता है । पूर्णिमा को तो बिलकुल वक़्त नहीं मिलता, रवि दादा काम ही इतना लेते है उससे। घर ? घर जाने की उम्मीद तो उसने कब की छोड़ दी है। दूसरी तरफ धरती, आज भी हमेशा चाँद के लौट आने के इंतज़ार में है।
चाँद जब घर से निकला था तो उसने सोचा ना था की कभी वापस अपनी माँ की गोद में वापस ना जा पाएगा ।
Bahut khuub dost.
ReplyDeleteGood work...last line
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